8TH SEMESTER ! भाग- 111( A Mortel Step-1)
Chapter-31: A Mortel Step
मेरी नज़र अब भी टिक-टिक करती दीवार पर लगी घड़ी पर अटकी हुई थी...घड़ी का सबसे छोटा काँटा बस 1 पर पहुचने ही वाला था,लेकिन निशा की कॉल का अब तक कोई नाम-ओ-निशान नही था...पहले मुझसे बात करने की बेचैनी निशा को रहती थी लेकिन अब मैं बेचैन हुआ जा रहा था... .मैं इस उम्मीद मे अभी तक जाग रहा था कि शायद वो मुझे अब कॉल करे, क्यूंकी हो सकता है कि उसे 12 बजे तक टाइम ना मिला हो...या फिर उसके मॉम -डैड उसके आस-पास हो....जब मेरी ये हालत है तो ना जाने उस डायन का क्या हाल हो रहा होगा... मुझे तो ऐसा लगता है कि यदि इस वक़्त मैं उसके सामने आ जाउ तो खुशी के मारे वो किसी डायन की तरह सच मे मुझे जिन्दा निगल जायेगी.
"अब तो हद हो गयी,2 बजने वाला है और मैं एक उल्लू की तरह उसके कॉल का इंतज़ार कर रहा हूँ...कुछ देर मे तो सुर्य भगवान भी अपने दर्शन दे देंगे...."मैने एक सिगरेट जलाई और बाल्कनी पर आ गया....
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ना जाने मैं किस उम्मीद मे निशा के घर की तरफ देख रहा था,मैं इस वक़्त पागलो की तरह सोचने भी लगा था... मैं इस समय ये सोच रहा था कि शायद निशा रात को मेरे फ्लैट की तरफ आए....मेरा दिल और दिमाग़ इस वक़्त अपनी जगह से थोड़ा खिसक गया था शायद, जो मैं ऐसी बेबुनियाद ख़यालात अपने जहन मे ला रहा था...मैने बहुत देर तक निशा के घर की तरफ अपनी नज़रे गढ़ाए रखी, इस आस मे कि कही वो इस समय मुझसे मिलने आ जाये ...
मेरा दिल अब मेरे दिमाग़ पर हावी होते जा रहा था... निशा के उस एक कॉल के इंतज़ार ने मेरे सारी क्षमताओ पर क्वेस्चन मार्क लगा दिया था.. .मुझे इस समय ना तो रात का तीसरा पहर दिख रहा था और ना ही उल्लू की तरह जाग रहा मैं...मुझे तो दिख रही थी तो सिर्फ़ निशा... कभी-कभी मुझे निशा के घर की तरफ जाने वाली गली मे कुछ आहट सुनाई देती ,मुझे ऐसा लगता जैसे कि निशा अभी चारो तरफ फैले इस अंधेरे से बाहर निकल कर श्वेत कपड़ो मे प्रकट हो जाएगी....
मेरे 1400 ग्राम वजन वाले ब्रेन का एक नुकसान यही था कि मेरा दिमाग़ हद से ज़्यादा क्रियेटिव था...वो अक्सर छोटी से छोटी आहट को किसी का आकार देने पर जुट जाता है... हर कहानी की एक दूसरी कहानी ही बनाने लग जाता है....जैसे कि इस वक़्त हो रहा था और यदि शॉर्ट मे कहे तो मेरा दिमाग़ फॉर्वर्ड की जगह बैकवर्ड डायरेक्शन मे काम कर रहा था....
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"एक बार निशा के घर का राउंड मार कर आता हूँ,क्या पता वो अपने घर की छत मे खड़े होकर मेरा इंतज़ार कर रही हो..."इसी के साथ एक और बेवकूफी भरी सोच मेरे अंदर आई...
"अबे पागल है क्या, इतनी रात को निशा अपने घर की छत पर क्या डे -नाइट मैच खेल रही होगी...तू शांति से सो जा..."मैने खुद का विरोध किया....
"अरमान...एक बार देख कर आने मे क्या जाता है...वैसे भी तो तू बाल्कनी मे खड़ा होकर सिगरेट ही जला रहा है...ज़्यादा सोच मत और चल निशा के घर के पास चलते है..."
WTF, मै खुद से क्यों बात कर रहा हूँ...?? और ऐसे बात कर रहा हूँ जैसे सच मे यहाँ मेरे आलावा कोई दूसरा शख्स मौजूद हो...?? मानो यहाँ एक नहीं बल्कि दो -दो अरमान हो... अरमान 1.0 & अरमान 2.0. मै सटक गया हूँ क्या...?? मैने अपना सर जोर से दाए -बायें झटका...ताकि मेरा दिमाग़ सही से काम करें और पीछे पलटा. पीछे पलट कर मैने रूम के अंदर देखा ,अरुण और वरुण इस समय गहरी नींद मे थे... यानी मै खुद से ही बात कर रहा था. मैने जल्दी-जल्दी सिगरेट के चार-पाँच कश लिए और बाल्कनी से डाइरेक्ट नीचे कूद गया और अंधेरे मे ही निशा के घर की तरफ चल पड़ा...
निशा के घर से कुछ दूरी पर आकर मैं रुक गया और निशा के घर पर एक नज़र डाली..वैसे कहने को तो निशा का घर इस कॉलोनी का सबसे बड़ा और आलीशान घर था...लेकिन इस वक़्त रात के अंधेरे मे निशा का घर सबसे भयानक लग रहा था,..पूरे घर की लाइट्स ऑफ थी ,वहाँ रोशनी के नाम पर निशा के घर का चौकीदार जिस रूम मे रहता था,सिर्फ़ उसी रूम की लाइट जली हुई थी....सबसे खूबसूरत चीज़, रात मे सबसे बदसूरत भी हो सकती है ,ये मैं अभी देख रहा था इसलिए मैने खुद को यहाँ आने के लिए कोसा और चुप-चाप वहाँ से खिसक लिया... साला कोई भूत -वूत मिल गया तो...???
इसलिए, मैं अब अपने फ्लैट की तरफ आ रहा था ये सोचते हुए कि निशा के दिमाग़ मे इस वक़्त आख़िर चल क्या रहा है और उससे भी ज़्यादा ये कि मेरे दिमाग़ मे इस वक़्त क्या चल रहा है...?? क्या सोचकर मैं इतनी रात को निशा के घर की तरफ गया कि वो रात के 3 बजे छत पर खड़े होकर पतंग उड़ा रही होगी...? उसके बाद मैं ठीक उसी रास्ते से फ्लैट के अंदर घुसा ,जिस रास्ते से मैं बाहर आया था यानी बालकनी से चढ़कर. अंदर पहुचने मे थोड़ा टाइम लगा, मुश्किले भी आई पर दरवाजे के बाहर खड़े होकर घंटो दरवाजा पीटना और वरुण को आवाज़ देने से ये अच्छा ही था....मैने पीसी ऑन करके अपनी ईमेल भी चेक की ,लेकिन निशा का कोई मेल अभी तक नही आया था....
"कहीं उसके बाप को मालूम तो नही चल गया कि ,निशा और मेरा चक्कर चल रहा है...?? यदि ऐसा हुआ तो फिर मेरा तो उपरवाला ही मालिक है..."
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आधे से अधिक रात तो मैने सिगरेट पीने मे बीता दी थी और बचा हुआ समय बिस्तर पर पड़े-पड़े करवटें बदलने मे गुजर गया और सुबह 6 बजे जाकर नींद लगी लेकिन 2 घंटे बाद ही मुझे अरुण ने जगा दिया.... मतलब मुझे ऐसा लगा की अभी सिर्फ 2 घंटे हुए होंगे... क्यूंकि उठने के बाद मेरा सिर दर्द देने लगा...
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"उठ बे, 12 बज गये..."
"क्या ? 12 बज गये...धत्त तेरी की..."मैं एक दम से उठकर बैठते हुए बोला और घड़ी पर नज़र डाली" साले, कुत्ते.... अभी तो 8 बजे है बे "
"चल आगे बता क्या हुआ..."चाय का एक बड़ा सा कप मेरे सामने रखते हुए वरुण बोला...
"अभी नींद आइंग..."बोलते हुए मैं वापस बिस्तर पर लुढ़क गया...
"अबे 10 बजे मुझे ऑफीस जाना है...इसलिए सोच रहा हूँ कि तेरी बकवास सुनता चालू...ले पी.."
मैने कप उठाया और ज़ुबान से लगाया
"अबे तुम्हारी.... ये तो दारू है..."शकल बिगाड़ते हुए मैं बोला
"सालो, 12 बजे का बोलकर 8 बजे उठाते हो... कॉफ़ी का बोलकर दारू पिलाते हो, कप मे... "
"उससे क्या फरक पड़ता है..वैसे यदि तेरा मन नही तो रहने दे..मैं पी लूँगा..."
"ना मुन्ना ना... मेरे शरीर मे खून की जगह दारू दौड़ रहा है.. दारू को तो मैं मरते समय भी मना नहीं कर सकता, वैसे भी.... I lOvE dArU mOrE tHaN GiRlS...☠️"
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ऐश और दिव्या पर मुझे भरोसा नही था कि वो दोनो मेरी बात मानेगी और अपना मुँह बंद करके रखेगी...इसलिए मुझे हर दिन थोड़ा सा डर ज़रूर रहता कि कही वो कैंटीन वाली बात किसी को बता ना दे... कैंटीन वाले कांड के बाद कई दिनो तक दिव्या और ऐश कॉलेज मे नही दिखी और अपने पास अब इतना टाइम भी नही होता था कि उनके क्लास के बाहर खड़े होकर उनका इंतज़ार करता रहूं क्यूंकि अब हॉस्टल के हर काण्ड मे लड़के मुझे इन्वॉल्व करने लगे थे. इधर वर्कशॉप वाला फ़ौजी भी हम पर गोली पे गोली फायर किए जा रहा था...उसका कहना था कि हर एक शॉप की एक अलग प्रैक्टिकल कॉपी बनानी पड़ेगी और 2 फिगर फ्रेम करवा कर उसे देने होंगे... इधर फ़ौजी तो उधर थर्ड सेमेस्टर के एग्जाम्स भी कुछ हफ्ते बाद दस्तक देने वाले थे.... इसलिए मेरे पास समय का मानो अकाल सा पड़ गया था... बड़ी मुश्किल से हम बाथरूम को स्पर्म डोनेट कर पाते,मेरा मतलब हिला पाते... क्यूंकी प्रैक्टिकल और असाइनमेंट के पन्नो ने हमे सब कुछ लगभग भुला सा दिया था...कभी-कभार आते-जाते..ऐश से मेरी मुलाक़ात हो जाती थी और अब वो मुझे देखकर इग्नोर ना करके एक प्यारी सी स्माइल देती थी ,वो भी गौतम से छिपकर ......
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जैसा कि मैने पहले बताया कि मेरी याददाश्त बहुत तेज़ है ,मैं चीज़ो को उतनी जल्दी नही भूलता और ना ही उन्हे इग्नोर करता हूँ और पुलिस स्टेशन वाला केस तो जब मेरे क्लास के लौन्डे नही भूले तो भला मैं कैसे भूल सकता हूँ... मैं फर्स्ट ईयर के उन दोनो लड़को को दिखाना चाहता था कि मैं क्या हूँ और मेरी स्टेटस क्या है....मेरे ख़याल से ऐसे सिचुयेशन मे दुनिया मे सिर्फ़ दो केटेगरी के लोग होते है....
पहला वो जो बड़ी से बड़ी बात को हंस कर टाल देते है और ऐसे बिहेव करते है..जैसे कि कुछ हुआ ही नही...जबकि किसी ने अच्छे से खोलकर उनकी मारी होती है और दूसरे केटेगरी के लोग वो होते है जो एक बूँद जैसी छोटी से छोटी बात को समुंदर की सुनामी जितनी बडी समस्या बना देते है.... पर मै इन दोनों केटेगरी मे नहीं था... मैने अपने लिए तीसरी केटेगरी बनायीं हुई थी और मै तीसरी केटेगरी का था.
मेरे अंदर ये दोनो ही खूबिया थी,जिन्हे मैं परिषतिथियो के अनुसार ,अपने Sixth Sense की मदद से अपनी इस खूबी का अच्छे तरीके से इस्तेमाल करता था...मैने उन दोनो को उनकी उस एफ.आइ.आर. वाली करतूत के लिए एक प्लान बनाया था और जैसा कि अक्सर होता है...इस प्लान की खबर सिर्फ़ मुझे और मेरे दिमाग़ को थी...जब मामला लड़ाई-झगड़ा का हो और मेरे प्लान मे सिदार शामिल ना रहे,ये नामुमकिन ही था.. .इसलिए मैने अपना मोबाइल निकाला और सिदार का नंबर मिलाया....
"Good Afternoon, MTL Bhai."दूसरी तरफ सिदार के द्वारा कॉल रिसीव करते ही मैं बोला...
"मेरे ख़याल से तूने मुझे गुड आफ्टरनून बोलने के लिए तो कॉल नही किया है...चल जल्दी से काम बोल..."
"उन दो लड़को को तो जानते ही होगे,जिन्होने मुझपर और अरुण पर एफ.आइ.आर. किया था..."मैं सीधे पॉइंट पर आ गया,क्यूंकी अब लंच ख़तम ही होने वाला था और मैं नही चाहता था कि वर्कशॉप वाला फ़ौजी मुझपर फ़ाइल के साथ साथ लेट आने के लिए भी मिसाइल दागे....
"हां, नाम से जानता हूँ,..."
"वो दोनो बहुत उड़ रहे है,दोनो को ज़मीन पर लाने का है "